hindi hasya kavita daya

दया

Hindi hasya kavita Daya : मानिनी ने अपनी इस कविता के माध्यम से आडम्बर से भरे हुए लोगों की मानसिकता का बेहद सटीक चित्रण किया है।

भूख में होती कितनी लाचारी,
बताने के लिए एक भिखारी
लॉन की घास खाने लगा

गृहस्वामिनी के मन में दया जागी,
आयीं भागी-भागी

बोली क्या करते हो भैया?
भिखारी बोला ‘भूख लगी है मैया !
खुद को मरने से बचा रहा
इसलिए घास चबा रहा।’

गृहलक्ष्मी ने आवाज में मिसरी घोली,
ममतामयी स्वर में वह बोली
ये घास मत खाओ,
मेरे साथ अन्दर आओ।

दमदमाता हाल, जगमगाती लॉबी
एशोआराम के सारे ठाठ नबाबी
फलों से लदी खाने की मेज,
रसोई से आयी जब खाने की सुगंध बड़ी तेज
तो भूख से बजने लगे पेट में नगाड़े
भिखारी भौचक्का देखता रहा!
जब मालकिन लायीं ,
उसे घर के पिछवाड़े!

मैडम ने अत्यधिक प्यार से कहा,
नर्म है, मुलायम है, कच्ची है
इसे खाओ भैया!
ये बाहर की घास से अच्छी है

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