Hindi kavita shunya viruddh anant

शून्य विरुद्ध अनन्त

Hindi kavita shunya viruddh anant

जलता कोयला क्या कहे राख से…
मैं हूं इक शोला , तू बस खाक है…

उगता सूरज क्या कहे ढलते सांझ से…
मैं हूं इक प्रकाश का दरिया, तू बस है अन्धकार का जरिया…

शून्य अनन्त की जब दौड़ छिड़ी…
दूर अन्त तक पहुंचने की जब होड़ लगी…

रहा किनारे बैठ देखा जब…
पाया दोनो को अपने छोर तलक तब…

रही किसकी जीत किसकी हार…
सब समय समय का है ये सार…

मेहनत का जब तू थामे हाथ…
ले कदमों को साथ साथ…

भय घबड़ाये भाग्य सराहे…
कर ले कठिनायों से दो दो हाथ…

error: शेयर करने के लिए कृपया सोशल शेयर बटन का प्रयोग करें!