Holi Par Kavita

बेरंग होली

holi par kavita

न कोई रंग
न गुलाल
न मन में उल्लास
ऐसी होली का क्या
मन था पूरे दिन उदास
दुख के रंग में रंगे मन पर
नहीं चढ़ सका खुशियों का गुबार
तड़फड़ाहट में बीता दिन
आंखों में गीलेपन का आभास
रंगों का पर्व होली
नहीं घोल पाई
अपनेपन की चाशनी
अपनों को खोकर मिला जख्म
शायद समय
ही भर सके
जिसका करना होगा
इंतजार
हर पल
हर मोड़ पर
जीवन
के पथ पर
सपनीली राहों
पर
उस
खुशी का
जिसने
होली
को किया
बेरंग
आज

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