unity in diversity

एकता में अनेकता

नयी पीढ़ी को पुरानी बातें समझ नहीं आतीं। बल्कि यों कहें कि पुरानी बातों से अब बैर सा हो गया है। “विविधता में एकता” या “अनेकता में एकता”, अंग्रेजी में कहें तो Unity in Diversity जैसे वाक्य बड़े गर्व से हम लोग दुहराते हैं। पर अब समय “एकता में अनेकता” का हो गया है। तात्पर्य यह है कि कैसे एक से अनेक की सिद्धि हो वह सिद्धान्त काम का है बाकी तो बस नाम का है।

गाय को ही लीजिए, उसकी महत्ता है, क्योंकि वह दूध के साथ वोट भी देती है। भैंस तो मारे जलन के काली हुई है। इतनी सेवा कर के भी उसे मौसी तो क्या दासी का ख़िताब भी हासिल न हुआ। ये बात अलग है कि अब अक्ल बड़ी की भैंस वाला मुहावरा भी अपना अर्थ खोता जा रहा है। उसकी जगह भैंस बड़ी की अक्ल ने अपना स्थान बनाना शुरू कर दिया है। अब अक्ल को कोई नहीं पूछ रहा। और अगर कहीं अक्ल वाले ने मुँह भी खोलने की कोशिश की तो भैंस की सींग देख के ही उसकी हवा निकल जाती है। भैंस इतनी बड़ी हो गयी है की अक्ल वाला पूरा महकमा आजकल भैंस ढूँढने में लग जाता है।भैंस की जो इज्जत है बड़े-बड़े अक्ल वालों की नहीं है।

क्रिकेट को हम देव-क्रीड़ा मानते हैं। ये ओलंपिक क्या है? इतने सारे खेल कौन याद रखेगा? कौन हारा, कौन जीता, कितने मैडल आए और उसमें भी कितने स्वर्ण , कितने रजत, कौन हिसाब रखेगा? सो हम एक खेल पकड़ के बैठे हैं। खेल तो खेल मनोरंजन भी करवाता है। यहाँ “एकता में अनेकता” है। एक ही खेल, वही दुनिया भर के खिलाड़ी, लेकिन अलग-अलग तरह से मज़ा देते हैं। कभी एक दूसरे के ख़िलाफ़ तो कभी आपस में भी लड़ते हैं। एक प्रकार का क्रिकेट तो ऐसा भी है जिसने दुनिया की सरहदों को तोड़ कर प्रेम का ऐसा बीज बोया है कि उसकी फसल काटते-काटते कई महापुरुष उसमे तमाम रुपया और डॉलर की फसल काट बैठे और साथ ही खुद की पूँछ को भी। अब पूँछकटे जानवर की तरह भटक रहे हैं।

हमारी पीढ़ी समझदार है। वो एक को पकड़ लेती है फिर सारे काम तो उसी से सिद्ध हो जाते हैं। अब अगर ओलंपिक में एक-आध मैडल भी मिल जाये (जो उस खिलाड़ी की अगाध तपस्या का परिणाम होता है। सरकारी तंत्र तो वैसे भी खली ढोल की तरह बजने के नहीं करता।) तो हम इतना ढोल पीट देते हैं कि कोई और दस बीस मैडल के लिए भी न पीटेगा। मैडल एक ही आता है पर उस से अनेक कार्य सिद्ध होते हैं। कोई मंत्री उसे दो करोड़ तो कोई मंत्री चार करोड़ दे के अपने वोटर खुश कर लेता है। मीडिया वाले चौबीस घंटे उसका प्रसारण करके अच्छी कमाई कर लेते हैं।

आखिर इतना मैडल लेके के करना क्या है। यहाँ एक मैडल के अनेक लाभ हैं। कई मैडल से भ्रम की स्थिति हो सकती है। कई खिलाड़ी जीतेंगे तो धर्म का मैडल, फिर जाति का मैडल, फिर भाषा का मैडल और अलग-अलग क्षेत्रों के मैडल आएगें। कोई कहेगा मैडल फलां राज्य में आया। कोई कहेगा कि फलां धर्म में आया। किसी को जाति की चिंता होगी। इतनी मुसीबत पालनी ही क्यों? जो मैडल हम ले आते हैं उन पर हम अरबों लोग गाला फाड़ के चिल्ला लेते हैं। एक मैडल से ही हम अनेकों कार्य सिद्ध कर लेते है। शांति और व्यवस्था बनाये रखते हैं सो अलग।

यह हमने बड़े ही परिश्रम और तपस्या से अर्जित किया है। यह “एकता में अनेकता” हमारा अविष्कार है जिसमे हम “एक” होकर भी “अनेकों” बातें कर लेते हैं; पर “अनेक” होकर भी “एक” काम नहीं कर पाते। इसपर हमारा बौद्धिक संपदा अधिकार है। यह हमारे देश के युवाओं का भविष्य है।

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