मोचीराम
मोचीराम आधुनिक हिंदी साहित्य में एक मील का पत्थर है। धूमिल जी की यह रचना विद्वता का दम्भ भरने वालों को कभी पची नहीं। पर कविता कोई हाजमोला नहीं जो लोगों को पच जाए। विद्वान उसे बार -बार निगलते हैं पचने का प्रयास करते हैं और उलटी कर देते हैं। आपको यह कविता पची या नहीं अवश्य बताएँ।