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हिंदी कौन बोल रहा है आजकल?

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एक व्यक्ति मुझसे हिंदी में कहता है: हिंदी कौन बोल रहा है आजकल?

हिंदी दिवस पर सब कहते हैं हिंदी बोलिए, हिंदी में लिखिए। और अगर न कहते तो भी क्या हिंदी उपेक्षित रह जाती? मेरे विचार से तो बिलकुल भी नहीं। हिंदी जिस प्रकार से आजकल प्रयोग की जाती है वही उसकी स्वीकार्यता और व्यपकता को बढ़ाती है।हिंदी में बेहद ही उत्तम साहित्य का सृजन हुआ है, इसमें किसी को शंका नहीं होगी; जिसने पढ़ा ही नहीं उसकी बात नहीं कर रहा हूँ। जहाँ एक ओर गंभीर कार्य हुआ है वही आम जन ने इसे अपनी सुविधानुसार इसे हल्के-फुल्के रूप में भी अपनाया है। कई लोग जिनकी मातृभाषा हिंदी नहीं है उनके हिंदी प्रयोग पर हँसा जा सकता है पर यही हिंदी की व्यापकता को बढ़ाता है। आंचलिक भाषाओं और अन्य विदेशी भाषाओं से शब्द लेकर हिंदी दिनोदिन समृद्ध होती जा रही है।

हिंदी अभी बेहद जवान है भारत की कई आंचलिक भाषाएँ भी इससे पुरानी हैं। इस जवान भाषा को कई तथाकथित बुड्ढे-खसूट-विद्वान इसे सूरदास और तुलसी के युग में ही घसीटे रखना चाहते हैं; कहते हैं घूँघट निकाल, घूँघट निकाल; बेशर्म और भद्दी हो गयी है तू। पर नयी पीढ़ी इसे आधुनिकता के साथ प्रयोग कर रही है। भाषा पर तत्कालीन समाज और बाज़ार का प्रभाव रहता है। लोग अब हिंदी सीख रहे हैं रोजगार और व्यापर के लिए।

हिंदी अपने आप में बेहद ‘कूल’ है। कश्मीर से कन्याकुमारी और असम से गुजरात तक अलग-अलग तरह से बोली जाती है और सर्वमान्य है। मुम्बई में टपोरी से लेकर शुद्ध सांस्कृतिक और बेहद जटिल रूप में यह भारत के राजपत्रों में प्रयोग हो रही है। यह सर्वस्वीकार्य है। मैंने ट्विटर पर हिंदी अनुवाद किया था। तकनिकी के साथ -साथ लोकप्रिय शब्दों के अनुवाद में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है। हिंदी में भी लोकप्रिय और तकनिकी शब्दों को जस का तस या थोड़े परिवर्तन के साथ स्वीकारना हिंदी की इन्टरनेट पर स्वीकार्यता बढ़ाएगा। ‘ट्विटर’ को ‘चहचह’ और ‘फेसबुक’ को ‘मुखपुस्तक’ कहने की आवश्यकता नहीं है। जैसे रेल अब हिंदी शब्द है वैसे ही तकनिकी शब्दों को अपना लेने से हिंदी का दायरा बढेगा ही। जिन भावनाओं के लिए पहले से ही शब्द हैं उन्हें प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

परिवर्तन ही संसार को चला रहा है। हिंदी में भी यह बात लागू होती है। यह परिवर्तन नयी नवेली हिंदी को भा रहा है और नयी पीढ़ी अपने नए अंदाज़ में हिंदी को लिख-पढ़-बोल रही है।

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