श्राद्ध पक्ष : ढकोशला, विज्ञान और श्रद्धा
क्या हम तर्कांध होते जा रहे हैं? श्राद्ध पक्ष पर पढ़िए एक बेहद दिलचस्प, तार्किक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण। अंधविश्वास, विज्ञान और तर्क में फंस कर हम अक्सर आधे-अधूरे ज्ञान को ही सब कुछ मान बैठते हैं।
क्या हम तर्कांध होते जा रहे हैं? श्राद्ध पक्ष पर पढ़िए एक बेहद दिलचस्प, तार्किक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण। अंधविश्वास, विज्ञान और तर्क में फंस कर हम अक्सर आधे-अधूरे ज्ञान को ही सब कुछ मान बैठते हैं।
AAP यानि आम आदमी पार्टी के विचारों का गहराई से विश्लेशण करता यह लेख बतात है की इस पार्टी के ‘आम आदमी’ का आम जन कैसा है। ..
अपनी चप्पल को एक बार थैंक्यू जरूर बोलिए। आवश्यक नहीं है कि चप्पल टूटे तभी आप थैंक यू बोले। परिणाम आपको भी चौंका देगा।
कट्टरपंथियों से मुक्त होने के लिए एक महिला सेनानी के अलावा दुनिया के पास और कोई रास्ता नहीं बचा है।
यह “एकता में अनेकता” हमारा अविष्कार है जिसमे हम “एक” होकर भी “अनेकों” बातें कर लेते हैं; पर “अनेक” होकर भी “एक” काम नहीं कर पाते।
राजनेताओं को पहले से ही पता है कि चुनाव अक्ल नहीं बल्कि भैंस के बल पर जीता जाता है, सो उन्होंने इसे ही आराध्य मान लिया है।
भाषा पर तत्कालीन समाज और बाज़ार का प्रभाव रहता है। लोग अब हिंदी सीख रहे हैं रोजगार और व्यापर के लिए।
सारे कुत्तों को अब एस. पी. के कुत्ते की ख़ुशामद में व्यस्त रहना पड़ता था। एक नए जवान ख़ून का कुत्ता इस बात से चिढ़ता था।