आम आदमी

आम आदमी

जब केजरीवाल जी ने रेल भवन के सामने धरना दिया था; तब बहुत सारे लोगों नें, जिसमे आप के समर्थक भी शामिल थे, उनकी इस बात पर जम कर आलोचना की थी। “द हिन्दू” में छपे समाचार में उन्हें एनार्किस्ट कहा गया और उन्होंने अपने को क्रन्तिकारी का जमा पहना कर अपनी एनार्किस्ट छवि को दबाने की कोशिश की।

यह कोई पहला मौका नहीं था जब इस तरह का काम मीडिया को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ‘आप’ द्वारा किया गया। इसके पहले और इसके बाद भी अपने को तथाकथित “क्रन्तिकारी” कह कर कानून तोड़ने कि कोशिश हुई और इस हास्यास्पद “क्रन्तिकारी” कदम कि अति मुम्बई में हो गयी।

समाचार माध्यमों से सभी जान गए हैं कि मुम्बई में क्या-क्या हुआ और इस बात पर सोचने पर मजबूर हुए हैं कि यह कदम क्या है? भारत का कोई भी नागरिक अब अव्यवस्था से तंग आ चुका है और वह एक वैश्विक स्तर कि व्यवस्था में भरोसा रखता है। हमारे देश में एक संविधान है; एक व्यवस्था है; और काम करने का एक तारीका भी है। हमारी व्यवस्था में खामियां जरूर हो सकती हैं पर उसको दूर करने का यह क्रांतिकारी तरीका हमारे गले नहीं उतारता। अति तो तब हो जाती है जब एक पार्टी जो अच्छे सिस्टम की, भ्रष्टाचार मुक्त भारत की बात करे और उसके काम ऐसे हों।

यह हमारे लिए सोचने की बात है कि आख़िर में यह कौन सी क्रांति हो रही है? जिस तरह से एक के बाद एक कदम आप उठा रही है उस से यह साफ दिखाई दे रहा है कि इस पार्टी के भावी इरादे क्या हैं। सबसे अधिक अपमान अगर आम आदमी का किसी पार्टी ने किया है तो वह अपनी इन हरकतों से ‘आप’ ने किया है।

 क्या आम आदमी अराजक है?

 क्या आम आदमी नियमों को ताक पर रखना और उन्हें तोड़ना पसंद करता है?

 क्या आम आदमी कानून को मज़ाक समझता है?

 क्या आम आदमी मेहनत और सम्मान से काम करने कि बजाय नियम तोड़ कर  सार्वजनिक सुविधाओं का दुरुपयोग करता है?  

इन सभी प्रश्नों का उत्तर “ना” है। तो फ़िर क्यों अपनी “आम आदमियत” को साबित करने के लिए आप द्वारा बार-बार ऐसी हरकतें की जा रही है? ‘आप’ को हमारी भावनाओं से खिलवाड़ बंद करके एक अच्छी पार्टी की तरह से काम करना चाहिए। अपनी इन गतिविधियों से ‘आप’ न सिर्फ खुद की बल्कि आम आदमी की छवि को भी धूमिल कर रही है।

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