आज सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की भरमार दिख रही है, International women’s day यानि अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस। जहाँ नजर दौड़ाए वहीं अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएं दी जा रही है। त्यौहार सा माहौल बना है सोशल मीडिया पर। यू कह लें कि यह सोशल मीडिया का त्यौहार है तो कुछ असंगत नहीं होगा, क्योंकि आज भी इस धरा पर नारी शक्ति का अपमान हो रहा है, उस नारी का जिसके बिना सृष्टि की रचना ही नहीं हो सकती।
पश्चिमी देशों की क्या बात करें, हमारे भारत की हालत देखकर तो हमें यह सब स्वांग मात्र ही लग रहा है। हमारे देश में नारी को पूजनीय माना गया है। मनुस्मृति के अनुसार:
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नही होता है वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं।
मनुस्मृति के दूसरे श्लोक में कहा गया है:
शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् ।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा ।।जिस कुल में स्त्रियाँ कष्ट भोगती हैं ,वह कुल शीघ्र ही नष्ट हो जाता है और जहाँ स्त्रियाँ प्रसन्न रहती है वह कुल सदैव फलता फूलता और समृद्ध रहता है।
हमारे इस प्राचीन ग्रंथ में यह बात यू हीं नहीं लिखी गई है, हम अपने परिवार की बात करें तो अपनी माँ और पत्नी को सम्मान देकर अपने घर की सुख-शांति के साथ, अपनी अगली पीढ़ी को भी सुखद जीवन का गुरुमंत्र देते हैं। हमारे जीवन में पहली महिला हमारी माँ होती है और माँ की महत्ता कुछ इस प्रकार से बताई गयी है:
माता गुरुतरा भूमेरू।
माँ इस धरती से बहुत भारी है।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।
माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बड़े हैं।
नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः। नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।।
माँ के समान कोई छाया नहीं, माँ के समान कोई सहारा नहीं। माँ के समान कोई रक्षक नहीं है और माँ के समान कोई प्रिय वस्तु नहीं है।
आज हम सब अपनी इस महान और पूजनीय माँ की सेवा तो दूर की बात है, अपने साथ घर में रख कर दो जून की रोटी और वस्त्र तक नहीं दे पा रहें हैं। उन्हें सड़क पर निकल कर भीख मांगने पर मजबूर कर दे रहें हैं या वृध्दाश्रमों में पहुंचा दे रहें हैं और हम सब भारत के कपूत अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का ढोंग रच कर महान बन रहें हैं। हमारे संस्कृत वांग्मय में स्त्री को इस प्रकार का विशेष दर्जा प्राप्त है।
मातृवत् परदारेषु य: पश्यति स: एव पंडित:।
वह जो अन्य स्त्री को माँ के रूप में देखता है, वह वास्तव में महान है।
नारी अस्य समाजस्य कुशलवास्तुकारा अस्ति।
लाएं समाज की आदर्श शिल्पकार होती हैं।
नारी राष्ट्रस्य अक्शि अस्ति।
महिलाएं देश की आंख होती हैं।
नारी माता अस्ति नारी कन्या अस्ति नारी भगिनी अस्ति।
नारी ही माँ है, नारी ही पुत्री है, नारी ही बहन है, नारी ही सब कुछ है।
हमारी संस्कृति, हमारी सभ्यता, हमारी देवभाषा नारी शक्ति को इतना महत्वपूर्ण स्थान देते हुए उसे समाज का आँख तक मानती है; तो हम अपनी कुन्ठित मानसिकता से उसे क्यों दूषित और अपमानित करते हुए अपने समाज की आँख फोड़ने पर लगे हैं। जिस समाज में नारी माँ, पुत्री, बहन सब कुछ है वहाँ बलात्कार जैसा कुकर्म क्यों होता है? जिस समाज में नारी की पूजा होती है वहाँ विवाह जैसा पवित्र बंधन कैसे टूट रहा है? यहाँ इन सब तथ्यों को उजागर करने का तात्पर्य है कि दामपत्य जीवन सुखमय हो, विवाह न टूटे, समाज में कोई भी माता-पिता सन्तान के रहते वृद्धाश्रम जाने को मजबूर ना हों और समाज का सबसे बड़ा कोढ़ यौन-उत्पीड़न बन्द हो।
तब तो वास्तव में महिला दिवस हर दिन है , अन्यथा खुद को बेहतर साबित करने के लिए साल में एक बार सोशल साइट्स पर बड़ें-बड़े निरर्थक पोस्ट डालना दिखावा व ढोंग मात्र है।