astitwaheen

अस्तित्वहीन

Hindi Kavita Astitwaheen

अरे मूर्खों!
तुम्हें क्या लगता?
किसी औरत या लड़की
की अस्मिता लूट आए हो,
जो खुद पवित्रता की पर्याय है,
उसे क्या अपवित्र कर पाए हो।
गन्दे स्पर्श से तो,
खुद अपनी आत्मा नापाक कर आए हो,
देखो जरा गौर से ,
ट्विंकल समझ जिसे रौदे, कुचले,
चीख रही बेटी तुम्हारी
इस शव से।

किताबें

दरिन्दों!
नहीं है ये निर्भया या दामिनी,
हो मौन सगी बहन तेरी,
तुझ पर थूत्कारती।
है ये माँ! तेरी दुत्कारती,
मलिन मुख लिए,
जनकर तुझे!
की भूल बड़ी।।
देखो इधर अंजना!
जो शान्त पड़ी।
तू इन्सान रूप में
पर इन्सान नहीं है
बता तेरी पहचान कहीं है
पशुता है तुझमें ;
पर अज्ञान नहीं है ।

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है तुझमें असुरत्व भरा,
पर छिपकर जो,
नरसंहार करा।
असुर जाति भी तुम्हें,
खुद से विलग करा।
मानव तो तू है नहीं,
ना जानवर ना ही दानव है,
देख तेरे कर्मों से ,
अस्तित्व तेरा कितना,
भयावह है।
सुन पातकी!
सजा तुम्हें तो होगी ही,
वो उम्रकैद हो चाहे फांसी की,
पर तू भी तो कुछ प्रायश्चित कर ले,
जिन हाथों से किया दुष्कर्म,
बढा़ उन्हें सत्कर्म में,
ले कटार कुतर दे,
उन दूषित अंगों को,
और अलगकर
दोनों कर को,
अपने तन से!

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