भेड़िया, गड़रिया और किसान

कहानी कुछ यूँ शुरू होती है…

एक गड़रिया था जो रोज़ भेंड़ चराने पहाड़ों पर जाया करता था।  एक दिन उसने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू किया भेड़िया आया! भेड़िया आया!! बचाओ! बचाओ!!  आस-पास के किसान जो अपने खेतों में काम कर रहे थे दौड़े-दौड़े आए तो देखा वहाँ कोई भेड़िया नहीं था। चरवाहे से पूछा कि भेड़िया कहाँ है। चरवाहा जोर-जोर से हँसने लगा और बोला कि भेड़िया तो कही था ही नहीं, मैंने सबको मूर्ख बनाया!

दूसरे दिन फिर वही घटना घटी, चरवाहा भेंड़ लेकर गया और जोर-जोर से चिल्लाना शुरू किया भेड़िया आया! भेड़िया आया!! बचाओ! बचाओ!!  आस पास के किसान फिर अपना काम छोड़ दौड़े-दौड़े आए तो देखा वहाँ कोई भेड़िया नहीं था। चरवाहे से पूछा कि भेड़िया कहाँ है। चरवाहा जोर-जोर से हँसने लगा और बोला कि भेड़िया तो कही था ही नहीं, मैंने सबको मूर्ख बनाया!

उसकी इन आदतों से किसान बहुत दुखी हो गए। एक  दिन सच में भेड़िया आया और चरवाहे ने  जोर-जोर से चिल्लाना शुरू किया भेड़िया आया! भेड़िया आया!! बचाओ! बचाओ!! पर उस दिन कोई भी किसान उस झूठे चरवाहे को बचाने नहीं आया, और भेड़िया उस चरवाहे को खा गया।

उस चरवाहे ने बीसवीं सदी में फिर जन्म लिया और एक समाज सुधारक के रूप में अपने को चित्रित करने के साथ-साथ रोज़ जोर-जोर से चिल्लाने लगा कि फलां चोर है! ये भ्रष्ट है! ये देश द्रोही है! मेरे पास सबूत है कि ये चोर है, वो बेईमान है! मीडिया को दिखाने लगा कि देखो ये दस्तावेज़ हैं मेरे पास!  बेचारे भोले-भाले लोगों को लगा कि यही सच है। सब अपना काम-धाम छोड़ कर उसकी मदद को आगे आए। वो दौड़े-दौड़े आये और पूछा कि चोर कहाँ हैं? भ्रष्टाचारी कहाँ है? तो उसने बड़ी चतुराई से सारा मामला घुमा कर लोगों को मूर्ख बना दिया!

फिर उसने बड़ी चतुराई से फिर वही ढोंग करना शुरू किया अरे ये देखो ये आदमी झूठ बोल रहा है यहाँ तो कोई विकास नहीं है! यहाँ तो सब गड़बड़  है! लोग फिर दौड़े आये और देखा कि यहाँ तो फिर सब गोलमाल है यह आदमी तो बहुत ही बड़ा झूठा है।

ख़ैर इन आदतों से लोगों को विश्वास हो गया कि यह आदमी तो ढोंगी है। और फिर चुनाव के दिन आ गए और वह फिर चिल्ला- चिल्ला कर लोगों को बताने लगा कि देखो ये आदमी चोर है! वो जो है वो महा भ्रष्ट्राचारी है! इसने सारे देश को एक उद्योगपति को बेच डाला! इसने आम आदमी कि जेब में सेंध मारी है! इसने तो देश को ही  निगल लिया और देश का सारा पैसा बहार स्विस बैंक में भेज दिया! 

लोग जान चुके थे कि ये मूर्ख बनाने वाला वही आदमी है, तो इस बार उसके पास कोई नहीं आया और चुनाव का भेड़िया, जो इस बार सच में उसके करीब आ चुका था, उसे खा गया।

कहानी वैसे तो यहीं ख़त्म हो जाती है। नैतिक शिक्षा यह है की झूठ नहीं बोलना चाहिए।

नयी कहानी

पर जैसे उस गडरिये ने पुनः जन्म लिया था, उस भेड़िए ने भी लिया। दोनों ने आपस में एक समझौता किया और किसानों को ठगना शुरू किया। अब किसान बेचारा है। इस मायावी भ्रम में वह उलझ सा गया है। सत्य और नैतिकता पर उसका विश्वास डिगने लगा है। भेड़िया तो उसका शत्रु था ही, अब गड़रिये की अमानवीयता से उसका हृदय लहू-लुहान हो गया है। अब वह किस पर भरोसा करे, कहाँ जाय, किसको अपना दुःख कहे कुछ समझ नहीं आता।

किसान सबकी नजर में है। सब उसकी बात भी कर रहे हैं। भरोसा भी दिलाया जा रहा है। सारी नीतियां किसान के हित में हैं पर किसान सबसे पीछे है। बेचारा सबसे पीछे खड़ा टुकुर-टुकुर सबको आगे जाता हुआ देखता है। समय की रेत को उसने मुट्ठी में पकड़ा अवश्य है पर वह रेत उसके हाथ से सरकती जा रही है। सब आगे निकलते जा रहे हैं पर किसान अभी वहीँ खड़ा है।

अपनी गरिमा खो कर मजदूर बनने की जिस पीड़ा को प्रेमचंद ने कफ़न में व्यक्त किया था वह पूस की रात किसानो पर अब भी उतनी ही भारी है। उसके हिस्से अब एक रस्सी आती है जिसपर उन्हें लटक जाना है। जब कई सारी रस्सियाँ फंदा बनकर हजारों मौत का तांडव रचती हैं तब किसी को इसमें एक प्लान नजर आता है। उस प्लान का उद्देश्य भोला किसान कभी समझ नहीं पाता। वह मानवता वश एक बार फिर मदद के लिए दौड़ पड़ता है।

इस नयी कहानी का अंत वीभत्स है। गड़रिया अब एक मायावी जादूगर बन चुका है। वह किसानों को भेंड़ बनाना सीख गया है। पहले वह बेचारा बन कर गुहार लगता है। किसान जब दौड़ कर उसके पास जाता है वह अपने चमत्कार से उनको भेंड़ में बदल देता है। और फिर एक चालाक और धूर्त हंसी के साथ वह उस बेबस किसान को देखता है। उसे मिमियाते हुए, अपनी जान के लिए तड़पते हुए और अंततः उस भेड़िए द्वारा शिकार किए जाते हुए।

इस नयी कहानी की नैतिक शिक्षा अगर आपको भी समझ आ रही हो तो अवश्य बताएं। मैंने वही लिखा जो देखा है।

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