एक कुत्ता था। एक महान क्रांतिकारी टाइप का कह लीजिए, जो हमेशा शहर के अन्य कुत्तों को सिखाता रहता था “सिर्फ आपके इस बकवास भौंकने के कारण हम आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। आप बेवजह भौंक कर अपनी ऊर्जा बर्बाद करते हैं।” एक डाकिया गुजरता है, एक पुलिसवाला गुजरता है, एक संन्यासी गुजरता है। कुत्ते किसी भी तरह की वर्दी के खिलाफ हैं, और वे क्रांतिकारी हैं-वे तुरंत भौंकने लगते हैं।
नेता उनसे कहता, “बंद करो इसे! अपनी ऊर्जा व्यर्थ बर्बाद मत करो, क्योंकि इसी ऊर्जा को किसी उपयोगी, रचनात्मक चीज में लगाया जा सकता है। कुत्ते पूरी दुनिया पर राज कर सकते हैं, लेकिन आप बिना किसी मकसद के अपनी ऊर्जा बर्बाद कर रहे हैं। यह आदत छोड़नी होगी। यही सबसे बड़ा पाप है, महा पाप है।”
कुत्ते हमेशा महसूस करते थे कि उनका नेता बिल्कुल सही है। तार्किक रूप से वह सही था। आखिर तुम क्यों भौंकते रहते हो? बहुत ऊर्जा बर्बाद होती है परिणामतः हर एक कुत्ता थका हुआ महसूस करता है। अगली सुबह फिर से सब भौंकने लगते हैं, और रात तक थक जाते हैं। इस सबका क्या मतलब है?
वे नेता का मंतव्य समझ सकते थे। लेकिन वे यह भी जानते थे कि वे सिर्फ साधारण, बेचारे कुत्ते थे। आदर्श बहुत महान था और नेता वास्तव में पथप्रदर्शक था-क्योंकि वह जो कुछ भी प्रचार कर रहा था, स्वयं उसका पालन भी कर रहा था। वह कभी भौंकता नहीं था। आप उसके चरित्र को देख सकते थे, कि उसने जो कुछ भी उपदेश दिया, उसका पालन भी किया।
एक दिन उन्होंने फैसला किया – यह नेता का जन्मदिन था – और उन्होंने उपहार के रूप में फैसला किया, कि कम से कम उस रात को वे भौंकने की इच्छा को दबा कर रखेंगे और नहीं भौंकेगे। कम से कम एक रात के लिए वे नेता का सम्मान करेंगे और उसे उपहार देंगे।
उस रात सारे कुत्ते शांत हो गए। यह बहुत कठिन था, ठीक वैसे ही जैसे जब आप ध्यान कर रहे होते हैं, तो न सोचना कितना कठिन होता है – यह वही समस्या थी। उन्होंने भौंकना बंद कर दिया – वे हमेशा भौंकते थे, वे महान संत नहीं थे, केवल साधारण कुत्ते थे। लेकिन उन्होंने बहुत कोशिश की। वे अपने स्थान पर दाँत बन्द करके, आँखें बन्द करके छिप गए, ताकि उन्हें कुछ दिखाई न दे।
नेता शहर में चारो ओर घूमता रहा, पूरी तरह से सन्न, हैरान और बेसुध। अब किसे उपदेश दें? अब किसे पढ़ाएं? उसने वास्तव में कभी नहीं सोचा था कि कुत्ते उसकी बात सुनेंगे, क्योंकि कुत्तों का भौंकना स्वाभाविक था। उसकी माँग अस्वाभाविक थी, लेकिन कुत्ते रुक गए थे। उसका पूरा नेतृत्व, सारी नेतागिरी दाँव पर लगी थी। वह कल से क्या करेगा? क्योंकि वह तो बस भाषण देना जानता था। पहली बार उसने महसूस किया कि चूँकि वह लगातार सुबह से रात तक भाषण देता रहता था, इसलिए उसे कभी भौंकने की जरूरत ही नहीं पड़ी। उसकी ऊर्जा भाषण में ही इतनी खर्च हो जाती थी कि वह भी एक प्रकार का भौंकना था।
उस रात जब कोई नासमझ कुत्ता नहीं मिला जिसे समझाया जा सके, उपदेशक-कुत्ते को लगा कि अब वह भोंके बिना नहीं रह पाएगा। उसने अपने अंदर भौंकने की जबरदस्त इच्छा को महसूस किया। कुत्ता आखिर कुत्ता है। वह एक अंधेरी गली में चला गया और भौंकने लगा। जब दूसरे कुत्तों ने सुना कि किसी ने समझौता तोड़ा है, तो उन्होंने कहा, “हमें क्यों भुगतना चाहिए?” पूरे शहर के कुत्ते भौंकने लगे। नेता वापस आया और कहने लगा, “बेवकूफ! तुम लोग भौंकना कब बंद करोगे? तुम्हारे भौंकने से ही हम कुत्ते बनकर रह गए हैं। नहीं तो हम पूरी दुनिया पर हावी हो जाते।”
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