Pavhari Baba: पढ़िए पवहारी बाबा से जुडी हुई अनोखी जानकारी और रोचक बातें।
पवहारी बाबा एक सिद्ध संत थे जिन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया था। स्वामी विवेकानंद अपनी भारत यात्रा के समय इनसे मिले। वे इतने प्रभावित हुए की उनको अपना गुरु मानकर दीक्षा लेने का विचार करने लगे। उसी रात स्वप्न में उनके गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस प्रकट हुए। स्वामी रामकृष्ण रोते हुए कहने लगे कि मुझमे ऐसी क्या कमी है जो तुम मुझे छोड़ रहे हो? स्वामी विवेकानंद को अपनी भूल का आभास हुआ और उन्होंने तुरंत ही पवहारी बाबा से दीक्षित होने का विचार त्याग दिया।
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पवहारी बाबा ठकुर जी के उपासक हैं और उनके मंदिर और अपनी जमात के साथ परम्परागत रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं। यह संत परम्परा का एक अंग है। जमात में प्राचीन समय में हाथी, घोड़े, गाय होते थे बैलों द्वारा बैलगाड़ी से सामान ढोया जाता था।
भोजन बनाने के लिए पीतल, तांबा और काँसे का बर्तन प्रयोग किया जाता है। इनमे से कुछ बर्तन सैकड़ों साल पुराने हैं। पर इनकी चमक आज भी देखते है बनती है।
इस क्रम में वे प्रतिदिन स्थान बदल कर रुकते हैं। एक स्थान पर एक रात्रि विश्राम करते हैं। जहाँ भी विश्राम होता है वही ठाकुर जी का दरबार लगता है। पूजा, आरती और सबसे महत्वपूर्ण ठाकुर जी का प्रसाद। प्रसाद बिलकुल ही सात्विक और दिव्य होता है। एक बार जो खा ले तो मन तृप्त हो जाता है।
संत परम्परा में सबसे अनोखे पवहारी बाबा कभी भी नमक का सेवन नहीं करते हैं। उनके आहार में मुख्य रूप से गोरस होता है। दिन में एक बार शाक अर्थात सब्जी का उबला हुआ भोजन ग्रहण करते हैं।
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