मोदी सरकार: प्रश्न और उपलब् धियाँ
एक आम नागरिक सरकर के बारे में क्या सोचता है अवश्य पढ़ें।
कट्टरपंथियों से मुक्त होने के लिए एक महिला सेनानी के अलावा दुनिया के पास और कोई रास्ता नहीं बचा है।
यह “एकता में अनेकता” हमारा अविष्कार है जिसमे हम “एक” होकर भी “अनेकों” बातें कर लेते हैं; पर “अनेक” होकर भी “एक” काम नहीं कर पाते।
राजनेताओं को पहले से ही पता है कि चुनाव अक्ल नहीं बल्कि भैंस के बल पर जीता जाता है, सो उन्होंने इसे ही आराध्य मान लिया है।
सारे कुत्तों को अब एस. पी. के कुत्ते की ख़ुशामद में व्यस्त रहना पड़ता था। एक नए जवान ख़ून का कुत्ता इस बात से चिढ़ता था।
यह दिवालियापन केवल भाषणों में नहीं है, दरअसल यह प्रतिबिम्ब है हमारे नेताओं की वास्तविक मानसिक स्थिति का, उनकी सोच का और भारत के उस अंधकारमय भविष्य का जो इस सोच के साथ और अंधकारमय होता जा रहा है।
इस देश में ऐसा क्यों होता है कि जो कुछ अच्छा होता है बाहर चला जाता है? क्यों जो प्रतिभावान हैं वे दुसरे देश मे ही सफल है?
इस नयी कहानी की नैतिक शिक्षा अगर आपको भी समझ आ रही हो तो अवश्य बताएं। मैंने वही लिखा जो देखा है।