shoe licking
पार्क में शाम होते ही रौनक छा गयी थी। दिन भर के काम से थके हुए लोग अपने परिवार के साथ वहां ताज़गी की तलाश में आ जमे थे। कुत्तों का भी यह प्रिय पार्क था और शाम के इस मनोरम वातावरण का आनंद लेने वे भी सदा की भांति आ जमे थे।
इन सब के बीच अचानक एक तगड़ा रौबदार कुत्ता प्रकट हुआ। और देखते ही देखते सब पर अपना प्रभाव डालने का उसका प्रयास चालू हो गया। सबसे पहले उसने आस-पास के पेड़ों पर वह किया जो हर कुत्ता करता है; चाहे वह कितने ही बड़े स्तर का कुत्ता क्यों न हो। कुछ कुत्तों ने इस पर गुर्रा कर अपना विरोध प्रकट किया। पर वह अपने मद में अँधा था, उसने सबको ऐसे अनदेखा किया जैसे उसके लिए उन बाकी कुत्तों का कोई अस्तित्व ही न हो। यहाँ तक की उसने जबाबी कार्यवाही में गुर्राने की आवश्यकता तक नहीं समझी। वह एस. पी. का कुत्ता था।
सूचना दूसरे कुत्तों तक भी पहुचाई गयी। सारे कुत्तों की आपात मंत्रणा हुई कि क्षेत्र में एक नया कुत्ता घुस आया है। सब पर रौब जमा रहा है। सबने मिलकर यह निर्णय लिया कि इसे भागना ही है। तुरंत सारे कुत्तों ने उसे घेर लिया और अपने-अपने तरीके से उसपर गुर्राने लगे। वह तब भी टस-से-मस नहीं हुआ। इन सड़क छाप कुत्तों की उसके सामने जैसे कोई औकात ही नहीं थी। उनमे से एक काटने को दौड़ा कि एक कुत्तानुमा इंसान उसपर बरस पड़ा। लाठी के भरपूर प्रहार को अपनी कमर पर झेलता हुआ और अपनी पूरी क्षमता से पीटने वाले को गरियाता वह वहाँ से जान बचा कर भगा। उसकी दुर्दशा देख और रणबांकुरे भी वहाँ से खिसक लिए।
अब यह साधारण बात नहीं रह गयी थी। कोई दूसरा कुत्ता सरेआम उनके इलाके में आ कर अपना अधिकार जमा रहा था और वे कुछ नहीं कर पा रहे थे। एक चालाक सा कुत्ता एक बूढ़े कुत्ते के पास गया। अगले दिन से बात कुछ बदली और नए कुत्ते का रौब कुछ कम लगा। झुण्ड के पुराने सरदार को हटा कर नया सरदार बनाया गया। अब तो माहौल पहले से भी बेहतर लगने लगा। एस. पी. के कुत्ते की कृपा सरदार के साथ-साथ किसी और कुत्ते पर भी हो जाती और उसे भी कुछ नया मिल जाता अपनी जीभ को ताज़ा करने के लिए। पर सारे कुत्तों को अब एस. पी. के कुत्ते की ख़ुशामद में व्यस्त रहना पड़ता था।
एक नए जवान ख़ून का कुत्ता इस बात से चिढ़ता था। उसे अपने पुराने सरदार के अचानक हटाए जाने की बात पच नहीं पा रही थी जो एक ईमानदार कुत्ता था और झुण्ड का ख्याल रखता था; कई निशान उसकी देह पर थे जो दूसरे झुंडों से लड़ाई में पड़े थे। एक दिन नए सरदार से उसकी लड़ाई हो गयी और उसने भी भड़ास निकालने में उसे काटकर लहूलुहान कर दिया। सब जानते थे कि दोषी कौन है, फिर भी युवा रक्त को शांत और संयमित रहने की राय सबने दे डाली। सब उस नए सरदार से सहानुभूति दिखाते रहे। पुराने सरदार ने युवा को समझया “देख भाई, एस. पी. का कुत्ता भी एस. पी. होता है और एस. पी. के कुत्ते का कुत्ता भी एस. पी. ही होता है।”
उस कुत्ते का रक्त ठंडा और सोच एकदम कुत्ते जैसी हो गयी।
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श्वेत वामन तीखी अभिव्यक्ति के लिए जाने जाते हैं। यद्यपि कड़वाहट उसके मूल में नहीं होता।