Gratitude story in Hindi: अगर आपको गुस्सा बहुत आता है तो यह कहानी आपको अवश्य पढ़नी चाहिए। अगर नहीं आता तो भी पढ़नी चाहिए। आपके विचार और प्रवर्धित हो जाएँगे।
भरी गर्मी में दिन भर घूमने के बाद, शाम को घर आने पर, सबसे पहला विचार मन में आता है कि हाथ पैर धो कर आराम कर लें। मैंने भी बस जूते उतारे और अपनी चप्पल पहने बाथरूम चला। इतने में चप्पल का फीता टूट गया। फिसल कर गिरते गिरते बचा। झल्ला कर मैंने उस चप्पल को निकाला। उसे यूं पटका जैसे उससे मेरी कोई पुरानी दुश्मनी हो। चप्पल को खरी-खोटी सुनाते हुए मैंने घर के बाहर पोर्च में, एक किनारे फेंक दिया।
वापस फिर से बाथरूम की ओर जाने लगा। तभी; ऐसा लगा मुझे कोई पीछे से बुला रहा है। कोई मुझसे कह रहा था “अरे, उसको थैंक यू तो बोल देते।”
मैंने मुड़कर देखा। वहां कोई नहीं था। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे कान बजे हैं। आवाज को अनसुनी कर आगे बढ़ गया और बाथरूम में जाकर हाथ मुंह धोने लगा।
आवाज फिर से आई, “भले आदमी! अरे चप्पल को थैंक यू तो बोल देते।”
“कौन है?” मैंने पीछे मुड़ कर देखा। वहां मैं खुद ही खड़ा था। शायद मैं अपने आप से ही बात कर रहा था। संभवतः आवाज मेरे अंदर कहीं से आ रही थी।
“चप्पल कोई आदमी थोड़ी है। कोई इंसान तो है नहीं जिसको जा कर थैंक्यू बोल दो” मैं झल्ला कर बोला।
“भले आदमी! तुमने उसको फेंका तो ऐसे ही जैसे कोई इंसान; और गुस्सा भी वैसे निकाला। गालियां भी वैसी ही दी। फिर माफी मांगने या धन्यवाद देने में वह चप्पल कैसे हो गई?”
बात तो तार्किक लगी। मेरा मन भी अपने अंतर्मन के साथ संवाद करने को बेचैन हो गया।
“तो, आपके हिसाब से वह चप्पल नहीं, बल्कि एक कोई जीता जागता प्राणी है ?”
“बिल्कुल! मेरे हिसाब से तो उसमें उतनी ही संवेदना है जितनी कि एक इंसान या जीव में होती है। याद करो जब तुम उस चप्पल को बाहर फेंकने जा रहे थे। तुम्हारे मन में कितनी कड़वाहट थी। किस तरह से तुमने उसे भला-बुरा कहा था। जब तुम ऐसा कर रहे थे, तब क्या एक पल के लिए भी, तुमने यह सोचा कि तुम एक निर्जीव से बातें कर रहे हो? एक निर्जीव चप्पल से बातें करने का यह हास्यास्पद काम कर रहे हो? तब तो तुम्हारे मन में नहीं आया; कि वह मात्र एक निर्जीव चप्पल है; ना कि कोई जीवित वस्तु या प्राणी। तुम्हारा गुस्सा उसके प्रति वैसे ही था जैसे जीवित प्राणी के प्रति होता।”
“गुस्सा आए तो किस पर निकालें? चप्पल के कारण पैर फिसल गया तो क्या करें? भला-बुरा कहें तो किसको कहे?” मेरा पारा सातवें आसमान पर जा रहा था। लेकिन मेरा अंतर्मन शांत चित्त से अपनी बात कहे जा रहा था। गहरी साँस लेकर उसने अपनी बात को जारी रखा।
“मैं यह नहीं कह रहा हूं कि तुम चप्पल को कहो या मत कहो। यह मेरे कहने का मतलब बिल्कुल भी नहीं है। मैं तो बस यह कहना चाहता हूं – अगर एक निर्जीव चप्पल को तुमने भला बुरा कहा, तो निश्चित रूप से तुम्हारे मन पर कुछ तो उसका प्रभाव पड़ा होगा। वह प्रभाव अच्छा या बुरा, कुछ भी हो सकता है। जहाँ तक मैं समझता हूं तुम्हारे मन में कड़वाहट ही आई होगी।”
“भाई, कड़वाहट तो नहीं आई बल्कि मन हल्का जरूर हो गया।”
“बिल्कुल! मैं वही तो कह रहा हूं। उसकी प्रतिक्रिया तो ठीक वैसे ही हुई है जैसे तुम किसी जीवित व्यक्ति या प्राणी से बात कर रहे हो। कहना बस यह चाहता हूं कि जिस तरह एक टूटे चप्पल के फिसलने पर तुमने उसे भला-बुरा कहा; क्या आज चप्पल के अंतिम समय में तुमने उसे धन्यवाद दिया? काश! आज उसके अंतिम समय में तुम उसे धन्यवाद देते। कहते — थैंक्यू चप्पल! तुमने इतने दिनों तक जो मेरा साथ दिया इसके लिए मैं तुम्हारा बहुत आभारी हूं। तुमने मेरा इतना भारी भरकम बोझ सहा। मुझे बहुत सारे काँटेदार औरनुकीली चीजों से बचाया। और-तो-और, तुम्ही ने आज तक मुझे फिसलने से भी बचाया। इन सब के लिए मैं तुम्हें धन्यवाद देना चाहता हूं।”
“हद हो गई! मतलब चप्पल को भी कोई थैंक यू बोलता है क्या? यह कुछ ज्यादा नहीं हो रहा है?”
“मुझे तो ऐसा नहीं लगता। अगर चप्पल को भला बुरा कहा जा सकता है तो अच्छी सेवा के लिए उसे थैंक्यू भी बोला जा सकता है। मैं चाहता हूं तुम अभी जाओ। चप्पल को सम्मान सहित उठाओ और उसको थैंक-यू बोलो। आखिर इसमें समस्या ही क्या है? तुम्हारी जेब से क्या लगता है? जैसे उसको तुमने भला-बुरा कहा; ठीक उसी तरह जाकर उसके सामने थैंक्यू बोलना है। इतनी सी तो बात है। मुझे लगता है तुम्हें यह एक बार करके देखना चाहिए।”
मुझे भी लगा इसमें नुकसान ही क्या है। चलो थैंक यू बोल देते हैं। देखें तो सही क्या होता है। मैं बाहर आ गया। उस जगह, जहां चप्पल पड़ी हुई थी। मन में चल रहे अंतर्द्वंद के बावजूद मैंने सोचा कि चलो आज चप्पल को थैंक यू बोल ही देते हैं। मेरे मन में वह सारे दृश्य घूम गए, एक चलचित्र की तरह, जब पहली बार मैंने ऑनलाइन शॉपिंग से वह चप्पल मंगाई थी।आदमी चाहे जितना भी बड़ा हो जाय। चाहे वह बूढ़ा ही क्यों ना हो जाए; नए कपड़े, नए फुटवियर को पाने की खुशी हमेशा ही रहती है। मैं नए डिजाइन की चप्पल को पाकर बहुत खुश था। उसे पहनकर मार्केट में चले जाना बुरा नहीं लगता था। घर तो घर, बाहर भी हमने उसे खूब पहना। चप्पल इतनी आरामदायक थी कि उसे पहनने के बाद जूते पहनना अच्छा नहीं लगता था। सोचते-सोचते मैं भावुक हो गया। चाहता तो था कि मैं थैंक-यू बोलूँ लेकिन मेरा गला भर आया। आँखों से आँसू बह निकले। मुँह से एक शब्द भी नहीं निकल पाया। मैंने चप्पल के जोड़े को उठाया और बाहर ले जाकर रीसाइकिलेबल कूड़े वाले कूड़ेदान में विसर्जित कर आया।
घर में वापस आते समय अंतर्मन ने पूछ ही लिया — कैसा लगा? मैं कुछ भी बोल नहीं पाया। चुपचाप अंदर चला गया। उस दिन के बाद स्वयं में एक परिवर्तन महसूस किया। आप भी अगर उस परिवर्तन को महसूस करना चाहते हैं तो अपनी चप्पल को एक बार थैंक्यू जरूर बोलिए। आवश्यक नहीं कि आपकी चप्पल टूटे तभी आप थैंक्यू बोले। आप अपनी वर्तमान सेवारत चप्पल को भी थैंक्यू बोल सकते हैं। परिणाम आपको चौंका देगा।
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श्वेत वामन तीखी अभिव्यक्ति के लिए जाने जाते हैं। यद्यपि कड़वाहट उसके मूल में नहीं होता।