अस्तित्वहीन
दरिन्दों!
नहीं है ये निर्भया या दामिनी,
हो मौन सगी बहन तेरी,
तुझ पर थूत्कारती।
राजनेताओं को पहले से ही पता है कि चुनाव अक्ल नहीं बल्कि भैंस के बल पर जीता जाता है, सो उन्होंने इसे ही आराध्य मान लिया है।
कब बदलेगी सूरत
कब थमेगा मौत का तांडव
कब कोई फरिश्ता आकर कहेगा
बस तुझे करना होगा पश्चाताप तूने किए हैं बहुत सारे पाप
भाषा पर तत्कालीन समाज और बाज़ार का प्रभाव रहता है। लोग अब हिंदी सीख रहे हैं रोजगार और व्यापर के लिए।
हिंदी कौन बोल रहा है आजकल? Read More »
सारे कुत्तों को अब एस. पी. के कुत्ते की ख़ुशामद में व्यस्त रहना पड़ता था। एक नए जवान ख़ून का कुत्ता इस बात से चिढ़ता था।
ऐसी अवधारणा, जो सबको समान मानने का आग्रह करती है . इसके अनुसार सामाजिक, संस्कृतिक या धार्मिक आधार पर किसी से भेदभाव नही होना चाहिए . उत्तम जीवन जीने हेतु सबके पास न्यूनतम संसधान होने चाहिए . चाहे विकासशील हो या विकसित देश हो, दोनो में सामाजिक न्याय का विचार व इसकी अभिव्यक्तियाँ राजनीतिक मर्यादाओं
यह दिवालियापन केवल भाषणों में नहीं है, दरअसल यह प्रतिबिम्ब है हमारे नेताओं की वास्तविक मानसिक स्थिति का, उनकी सोच का और भारत के उस अंधकारमय भविष्य का जो इस सोच के साथ और अंधकारमय होता जा रहा है।
मूर्ख बोल कर सोचते हैं, और ज्ञानी… Read More »
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् भाग् भवेत।
राष्ट्रीय एकात्मता Read More »
इस देश में ऐसा क्यों होता है कि जो कुछ अच्छा होता है बाहर चला जाता है? क्यों जो प्रतिभावान हैं वे दुसरे देश मे ही सफल है?
आज इतने ग़ुस्से में क्यों हूँ? Read More »
इस नयी कहानी की नैतिक शिक्षा अगर आपको भी समझ आ रही हो तो अवश्य बताएं। मैंने वही लिखा जो देखा है।
भेड़िया, गड़रिया और किसान Read More »